आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
Wah! Kitni nafasat se tanhaai kaa aalam pesh kiya hai! Kharab tabiyat ke karan 2/4 din net pe nahee aa saki,isliye der se tippanee de rahi hun! Kshama chahti hun.
तनहाई में वैसे ऐसा कम ही होता है कि पता ही नहीं चलता कब रात गई कब सुबह हुई वर्ना होता तो इसके उलट ही है । आसुओं व्दारा हमेशा ही साथ निभाया जाता है। नींद भरी आखें ओर करवट का तालमेल भी ठीक रहा । दराजे तनहाई , दार मदार, दर्क उर्दू कुछ ज्यादा ही होगई। हालंाकि दर्क का अर्थ भी लिख दिया गया है। शीर्षक भी अच्छा दिया है।
"और जागते को सुबह भी जगाने आई " ये क्या कह दिया ज्योति जी आपने. तन्हाई के आलम का ऐसा बयां कि सुबह की चेष्टा भी ओपचारिकतामात्र ही रह गयी .आपकी काव्यांजलि का बहुत बहुत आभार .
26 टिप्पणियां:
वाह जी बहुत खुब रचना धन्यवाद
आदरणीय ज्योति जी
नमस्कार !
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ।
आपकी कलम को सलाम
अंतिम पंक्ति ने सब कह दिया....बस्स्स्स और क्या कहूं...
प्रणाम.
और जागते को
सुबह भी जगाने आई ।
क्या बात है तन्हाई का आलमे बयां. बहुत बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए.
बहुत उम्दा.
क्या खूब तन्हाई के आलम का बयां किया है.
सलाम
और जागते को
सुबह भी जगाने आ गई...
वाह...नयापन है कलाम में
बधाई स्वीकार करें ज्योति जी.
बेहतरीन पंक्तियाँ..... सुंदर अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें ......
एकान्त का स्वांग निराला है।
बेहद खू्बसूरत अन्दाज़-ए-बयां लगा।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
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तनहाई में वैसे ऐसा कम ही होता है कि पता ही नहीं चलता कब रात गई कब सुबह हुई वर्ना होता तो इसके उलट ही है । आसुओं व्दारा हमेशा ही साथ निभाया जाता है। नींद भरी आखें ओर करवट का तालमेल भी ठीक रहा । दराजे तनहाई , दार मदार, दर्क उर्दू कुछ ज्यादा ही होगई। हालंाकि दर्क का अर्थ भी लिख दिया गया है। शीर्षक भी अच्छा दिया है।
बहुत सुन्दर ज्योति. बधाई.
करवटें दर-गुज़र करती रहीं आँखों में भरे नींदों को...
और जागते को सुबह भी जगाने आई ...
तन्हाई का बेहतरीन चित्रण । बहुत अच्छी रचना !
सुन्दर ...भावपूर्ण....बधाई।
"और जागते को सुबह भी जगाने आई "
ये क्या कह दिया ज्योति जी आपने.
तन्हाई के आलम का ऐसा बयां कि सुबह की
चेष्टा भी ओपचारिकतामात्र ही रह गयी .आपकी काव्यांजलि का बहुत बहुत आभार .
बहुत सुन्दर रचना..
खू्बसूरत .....बहुत सुन्दर....
सुंदर अर्थपूर्ण रचना के लिए धन्यवाद|
जागते जो सुबह जगाने आयी -ओह ,यह तो नाईंसाफी है सरासर ....
कविता में नया पन-सा है. अच्छी लगी कविता.
क्या बात है बहुत खूब।
और जागते को
सुबह भी जगाने आई
कमाल
bahut achchi lagi....
बहुत दिनों बाद पढ़ा है आपको बहुत खूबसूरत|
वाह वाह !
सही कहा है आपने ! शुभकामनायें आपको !!
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
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