तन्हा


यभीत हूँ

कही ये युग

बहुत ऊंचाई तक

पहुँचने के प्रयास में

नई तकनीक की

तलाश में

अपना वजूद न मिटा दे ,

महाप्रलय के शिकंजे में

फंस कर

अपना आधार न

गवा दे ,

आज हमें

सिर्फ तन्हा होने का

ख्याल डस रहा है ,

कल सारी धरती ही

तन्हा न हो जाये ______ l

टिप्पणियाँ

सच में स्थिति भय देने वाली ही है...... प्रभावित करती रचना
Smart Indian ने कहा…
कविता अच्छी है परंतु "तमसो मा ज्योतिर्गमय" की संस्कृति के वाहकों के लिये यह भय बेमानी है।
khatmprayah hi hai... shesh ki uthapatak jaari hai
स्वयं को स्थापित करने के प्रयास में तो यही निष्कर्ष दिखायी पड़ते हैं।
केवल राम ने कहा…
जीवन दर्शन को अभिव्यंजित करती रचना .......आपका आभार
vandana gupta ने कहा…
सच को बयां करती सुन्दर रचना।
ऐसा होने वाला है .. तरक्की कोई रोक नही सकता ... युग बदलेगा इस तन्हाई के बाद फिर से ....
राज भाटिय़ा ने कहा…
अति सुंदर लेकिन सत्य
Jyoti Mishra ने कहा…
truly day by day we r loosing our base !!
a thought provoking post !!
यह डर सताना तो लाजमी है. पर जीना भी जरुरी है. और विकास भी.
M VERMA ने कहा…
सार्थक चिंता ..

खूबसूरत रचना
Kunwar Kusumesh ने कहा…
स्थिति भयावह तो है ही क्योंकि आदमी तो अपनी हरकतों से बाज आने वाला अब है नहीं. क़ुदरत को ही कुछ करना पड़ेगा.
बेनामी ने कहा…
bahut khoob
aajkal har cheez out of limit hoti ja rhi hain
BrijmohanShrivastava ने कहा…
यही होगा यह कविता नहीं भविष्यवाणी है
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
कही ये युग
बहुत ऊंचाई तक
पहुँचने के प्रयास में
नई तकनीक की
तलाश में
अपना वजूद न मिटा दे ,

बहुत सुंदर और सार्थक रचना !!!!!!!!!
Urmi ने कहा…
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना! सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है!
Rachana ने कहा…
sahi hai bhavishyavan hi hai hum kuchh aesa hi kar rahenhain
परिवर्तन ही जीवन का लक्षण है. हर युग में मनुष्य भयाक्रांत हुआ है किन्तु प्रकृति ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनुकूल परिस्थिति तैयार कर जीने की सम्भावना को अब तक जीवित रखा है.अनुग्रह की भी एक सीमा होती है.काश ! इस बात को अनुग्रहित मनुष्य समय रहते समझ ले.आपकी रचना में गहन विचार मंथन है
Vivek Jain ने कहा…
डरिये नहीं, कुछ नहीं होगा,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Alpana Verma ने कहा…
चित्र और कविता के भाव एक दूसरे के पूरक लगे..तन्हाई कुछ इसी तरह भयावह होती है!
Dr Varsha Singh ने कहा…
आज हमें
सिर्फ तन्हा होने का
ख्याल डस रहा है ,
कल सारी धरती ही
तन्हा न हो जाये .....

बहुत ही सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..
Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…
सफलता एक पिरामिड की तरह होती हैं.
आप जितना उपर जाते हो, वो उतनी सकरी होती जाती है.
और आप अकेले होते जाते हो.
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क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?

बाबा का अनशन टुटा !
Rakesh Kumar ने कहा…
ज्योति जी आप तो प्रकाशस्वरूप हैं.फिर भय कैसा?
महाप्रलय शरीर की ही हो सकती है,आत्मा की नहीं. कबीरदास जी कहते हैं
'झूंठे सुख को सुख कहें, मानत हैं मन मोद
जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद'

जीवन काल में हम आत्म ज्ञान प्राप्त करलें यही सबसे बड़ी ऊँचाई पर पहुँच पाने की तकनीक है.

आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
मनोज भारती ने कहा…
तन्हा ...तन्हा ...तन्हा मत सोचा कर
मर जाएगा तू मत सोचा कर ...

...शायद इस विकास में ही कुछ बेहतर निकल आए ...
Rakesh Kumar ने कहा…
आपके ब्लॉग पर दर्शन न होने से बहुत सूना सूना लगता है.
Rachana ने कहा…
sahi kaha aapne sthiti bhayabhit karne wali hi hai
sunder kavita
rachana
Ravi Rajbhar ने कहा…
Chinttan bilkul sahi hai...aur bhaykari bhi nishchit hi hamare kadam usi disha me badh rahe hain.
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
वर्तमान दशा का सटीक आकलन....
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…
ज्योति जी आप का भय बहुत सही है हम सब का भी लेकिन घबराइए मत प्रभु अपनी सत्ता अपना महल पूरा नहीं गिरता बस थोडा थोडा तोड़ सुधारता रहता है -सुन्दर रचना
शुक्ल भ्रमर ५

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