जियो और जीने दो ....
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
टिप्पणियाँ
bahut khoob!!
कहते हैं आईने में मुखडा अपनी खूबसूरती
का आकलन करने के लिए देखते हैं.
लेकिन यदि आईना देख शर्मिंदगी महसूस हो,
और दया धर्म की ओर चलने की भी सोचे
तो सच में कहेंगें जमीर जिन्दा है.
आजकल आप बहुत गूढ़ होती जा रही हैं,ज्योति जी.आपके १६ शब्दों पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है.शब्दों की ज्योति प्रज्जवलित करती हैं आप.आभार.
bahut sunder ...
हार्दिक शुभकामनाएँ आपको.
बहुत जानदार रचना है यह तो …
बधाई !
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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