जमीर


उसका जमीर
आज भी
जिन्दा है ,
तभी तो खड़ा हो
आइने के आगे
वह शर्मिंदा है .

टिप्पणियाँ

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kshama ने कहा…
Wah! Kya baat hai!
Rakesh Kumar ने कहा…
'मुखडा क्या देखे दर्पण में,तेरे दया धर्म नहीं मन में'

कहते हैं आईने में मुखडा अपनी खूबसूरती
का आकलन करने के लिए देखते हैं.

लेकिन यदि आईना देख शर्मिंदगी महसूस हो,
और दया धर्म की ओर चलने की भी सोचे
तो सच में कहेंगें जमीर जिन्दा है.

आजकल आप बहुत गूढ़ होती जा रही हैं,ज्योति जी.आपके १६ शब्दों पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है.शब्दों की ज्योति प्रज्जवलित करती हैं आप.आभार.
बेनामी ने कहा…
ummdaa lines
Jeevan Pushp ने कहा…
सार्थक प्रस्तुति !
Sach kaha hai ... Janvar aur insan mein Ab ye fark hai .. Insan sharm kho chuka hai ...
बहुत सुन्दर!! लाजवाब टाइप :)
सच है, दर्पण कुछ तड़प भर कर जाता है, हर बार..
Bharat Bhushan ने कहा…
आइने की जादूगरी ही है कि ज़मीर मरता नहीं प्रतिबिंबित होता रहता है.
Saras ने कहा…
बहुत प्यारी ..प्रभावपूर्ण लगी आपकी क्षणिका! बधाई !! पहली बार आपके ब्लॉग पर जाना हुआ
shalini rastogi ने कहा…
एक प्रभावशाली क्षणिका !!
प्रेम सरोवर ने कहा…
बहुत ही सारगर्भित प्रस्तुचि । मेरे नए पोस्ट "राम दरश मिश्र" पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए इंतजार करूंगा । धन्यवाद ।
Anupama Tripathi ने कहा…
sarthak ...satya kathan ...
bahut sunder ...
Rakesh Kumar ने कहा…
होली के रंगारंग शुभोत्सव पर बहुत बहुत
हार्दिक शुभकामनाएँ आपको.
.
बहुत जानदार रचना है यह तो …
बधाई !
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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Asha Joglekar ने कहा…
आपकी कई छोटी छोटी किंतु बडे आशय वाली कविताएं पढ गई । बहुत ही अच्छा लगा । जमीर ऐसा ही होता है सही वक्त पर आपको सही गलत की पहचान कराता है ।
Alpana Verma ने कहा…
bahut khuub likha hai Jyoti aap ne..
Akhilesh pal blog ने कहा…
sundar prastuti jyoti ji hapay new year

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