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24 टिप्पणियां:
Wah! Kya baat hai!
wah !
bahut khoob!!
अद्भुत ....
'मुखडा क्या देखे दर्पण में,तेरे दया धर्म नहीं मन में'
कहते हैं आईने में मुखडा अपनी खूबसूरती
का आकलन करने के लिए देखते हैं.
लेकिन यदि आईना देख शर्मिंदगी महसूस हो,
और दया धर्म की ओर चलने की भी सोचे
तो सच में कहेंगें जमीर जिन्दा है.
आजकल आप बहुत गूढ़ होती जा रही हैं,ज्योति जी.आपके १६ शब्दों पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है.शब्दों की ज्योति प्रज्जवलित करती हैं आप.आभार.
ummdaa lines
सार्थक प्रस्तुति !
Sach kaha hai ... Janvar aur insan mein Ab ye fark hai .. Insan sharm kho chuka hai ...
बहुत सुन्दर!! लाजवाब टाइप :)
सच है, दर्पण कुछ तड़प भर कर जाता है, हर बार..
आइने की जादूगरी ही है कि ज़मीर मरता नहीं प्रतिबिंबित होता रहता है.
बहुत प्यारी ..प्रभावपूर्ण लगी आपकी क्षणिका! बधाई !! पहली बार आपके ब्लॉग पर जाना हुआ
एक प्रभावशाली क्षणिका !!
बहुत खूब ....
बहुत ही सारगर्भित प्रस्तुचि । मेरे नए पोस्ट "राम दरश मिश्र" पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए इंतजार करूंगा । धन्यवाद ।
sarthak ...satya kathan ...
bahut sunder ...
होली के रंगारंग शुभोत्सव पर बहुत बहुत
हार्दिक शुभकामनाएँ आपको.
.
बहुत जानदार रचना है यह तो …
बधाई !
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- राजेन्द्र स्वर्णकार
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Happy Holi.
आपकी कई छोटी छोटी किंतु बडे आशय वाली कविताएं पढ गई । बहुत ही अच्छा लगा । जमीर ऐसा ही होता है सही वक्त पर आपको सही गलत की पहचान कराता है ।
waah
bahut khuub likha hai Jyoti aap ne..
sundar prastuti jyoti ji hapay new year
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