मिट्टी की आशा ....
सब चीजों को हमने
बस ,पाने का मन बनाया ,
जब हाथ नही वो आया
तो मन दुख से भर आया ।
जीतकर दुनिया भी सिकंदर
कुछ नही यहां भोग पाया ,
हुकूमत की लालसा में उसने
बस लाशों का ढेर लगाया ।
बहुत ज्यादा की आस में उसने
खुद को सिर्फ भटकाया ,
क्षण भर को आराम न मिला
ले डूबी उसे मोहमाया ।
मिट्टी की ही आशा है
मिट्टी की ही है काया ,
फिर क्यों जरूरत से ज्यादा
है, तूने लालच जगाया ।
मिले जितना उतने में ही
आनंद जिसने भरपूर उठाया ,
सुख मिला जीवन का उसी को
मेहनत से जिसने कमाया ।
ज्योति सिंह
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