युग परिवर्तन
न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
नारी भी यहॉ बदलती है ।
6 टिप्पणियां:
इस युग की सीता, अवश्य ही नारी भी ज्यादा सशक्त होगी। सुन्दर रचना हेतु बधाई ।
धन्यवाद सादर आभार
बहुत सुंदर रचना
नारी क बदलना चाहिए भी ... शक्ति और भक्ति तो नारी सदेव से है पर समय अनुसार हर परिवेश में खुद को ढालने की क्षमता है उसमें ...
सुन्दर रचना है ...
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/04/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस - 29 अप्रैल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
युग परिवर्तन के साथ नारी भी यहॉ बदलती है सशक्त नारी पर .. आपने बहुत उम्दा लिखा है
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