जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
टिप्पणियाँ
प्रेम गली अति सांकरी - टा में दो ना समाहि!!!!!!!!!
आपकी रचना पढ़कर यही याद आया | मैं में सब होकर भी कंगाली है और हम में कुछ ना होकर भी खुश हाली है | सुंदर अर्थपूर्ण रचना | सस्नेह हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत सुन्दर...