धीरे --धीरे ...
टूट रहे सारे रिश्ते
कल के धीरे- धीरे
जुड़ रहे सारे रिश्ते
आज के धीरे - धीरे ,
समय बदल गया
सोच बदल गई
मंजिल की सब
दिशा बदल गई ,
हम ढल रहा है अब
मै में धीरे -धीरे
साथ रहने वाले अब
कट रहे धीरे -धीरे ,
सबका अपना आसमान है
सबकी अपनी जमीन हो गईं ,
एक छत के नीचे रहने
वालों की अब कमी हो गई ,
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
टिप्पणियाँ
अच्छी रचना है ...
बीज वृक्ष बनेगा ।
पर जो बोयेंगे
वही उगेगा ।