दीवारे सहारे ढूँढती है

दीवारे  सहारे  ढूँढती है 

कल के नजारे ढूँढती है ,

वो पहले से लोग

वो पहले से जमाने ढूँढती है ,

आज के ठिकानों में 

कल के ठिकाने ढूँढती है ,

ऊँची-ऊँची इमारते नहीं

जमीन के घरौंदे  ढूँढती है ,

मकान की खूबसूरती नही

घर का सुख-चैन ढूँढती है ,

गैरों  की भाषा नही

अपनो की परिभाषा ढूँढती है ,

दिलो में अहसास के खजाने

विश्वास का सहारा ढूँढती है ,

उम्मीद की किरणों में

खुशियों की रौशनी ढूँढती है ,

रिश्तों मे व्यपार नही

प्यार को ढूँढती है ,

खिड़की से चांद -तारे को

दरवाजे पर अपने प्यारो को ढूँढती है ।

दीवारे सहारे ढूँढती है .........।

टिप्पणियाँ

अजय कुमार झा ने कहा…
वाह क्या कहने बहुत उम्दा। आपका अंदाज़े बयाँ निराला है ज्योति जी। रवानी और रफ़्तार यूँ ही बनी रहे। बहुत ही कमाल
Jyoti Singh ने कहा…
दिल से शुक्रियां करती हूं ।यू ही मार्ग दर्शन करते रहे अजय जी ,नमस्कार
सदा ने कहा…
वाह बेहद शानदार ...
Kishor se milen ने कहा…
बेहतरीन सोच
ज्योति बस इसी तरह लिखती रहना ।
Jyoti Singh ने कहा…
सभी साथियों को धन्यवाद करती हूं ,आप सभी ने आकर मेरे हौसले को बढ़ाया ,जरूर दीदी अब लिखती रहूंगी
Pallavi saxena ने कहा…
सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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