चीर कर सन्नाटा
श्मशान का
सवाल उठाया मैंने ,
होते हो आबाद
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों बिखरी है
इतनी खामोशी
क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ ।
ऐ श्मशान तेरा ये सन्नाटा
क्यो नही जाता ,
जबकि दे दे कर
हम अपनी जाने
तुझे आबाद करते हैं ।
11 टिप्पणियां:
निःशब्द हूँ। क्या कहूं समझ ही नहीं पा रहा ,सिर्फ इतना की बहुत दमदार और बहुत गहरा लिख दिया आपने
मैं इस काबिल तो नहीं अजय जी, लेकिन आपको मेरी रचना पसंद आई इसके लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी ,आपके शब्दों ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया ,बहुत बहुत धन्यवाद ।
बहुत गहरी बात !
लिखते रहें !!
निःशब्द करते भाव ... बेजोड़ सृजन
ये सन्नाटा जाना भी नहीं है...असल में ये मौन है।
बहुत बहुत शुक्रियां साथियों
सन्नाटे को कौन आबाद कर सका है आज तक ...
मन की बात बाखूबी रक्खी है आपने ...
शुक्रियां दिगम्बर जी ,तहे दिल से आभारी हूँ
No words to express my feeling
Kisi ke jane ka sannata .......
Bahut gahari bat likh di
अरे वाह यहाँ भी आई थी ,बहुत बहुत धन्यवाद
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