सन्नाटा
चीर कर सन्नाटा
श्मशान का
सवाल उठाया मैंने ,
होते हो आबाद
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों बिखरी है
इतनी खामोशी
क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ ।
ऐ श्मशान तेरा ये सन्नाटा
क्यो नही जाता ,
जबकि दे दे कर
हम अपनी जाने
तुझे आबाद करते हैं ।
टिप्पणियाँ
लिखते रहें !!
मन की बात बाखूबी रक्खी है आपने ...
Bahut gahari bat likh di