शाख के पत्ते
हम ऐसे शाख के पत्ते है
जो देकर छाया औरो को
ख़ुद ही तपते रहते है ,
दूर दराज़ तक छाया का
कोई अंश नही ,
फिर भी ख्वाबो को बुनते है
उम्मीदों की इमारत बनाते है ,
और ज्यो ही ख्यालो से निकल कर
जो देकर छाया औरो को
ख़ुद ही तपते रहते है ,
दूर दराज़ तक छाया का
कोई अंश नही ,
फिर भी ख्वाबो को बुनते है
उम्मीदों की इमारत बनाते है ,
और ज्यो ही ख्यालो से निकल कर
हकीकत से टकराते है
ख्वाबो की वह बुलंद इमारत
बेदर्दी से ढह जाती है ,
तब हम अपनी तकदीर को
वही खड़े हो ......
कोसते रह जाते है ।
बेदर्दी से ढह जाती है ,
तब हम अपनी तकदीर को
वही खड़े हो ......
कोसते रह जाते है ।
टिप्पणियाँ
सुन्दरता से उतारा है मन के ज़ज्बातों को........
जो देकर छाया औरों को
खुद ही तपते रहते हैं
बहुत सुन्दर .......!!
आप बुन रही हैं प्रकृति के रंग रूप शब्दों में .... वाह वाह उसने जलती हुई पेशानी पर पर हाथ रखा सा हाल है