आपबीती
तुम्हारे ओस रुपी अश्क से ये ,
नमी क्यो झलक रही है ?
कौन सी व्यथा की
ये लकीर खीँच रही है ।
किस दर्द भरी दास्ताँ को
बयां कर रही है ।
ऐ अजनबी ये तेरी आँखे ,
उदास लग रही है ।
खामोश निगाहें तुम्हारी
जुबां बन गई है ,
छिपाओ न और ज़ख्म
बहुत कुछ कह गई है ।
क्योकि हम सब के जो किस्से है ,
वही तो बुन रही है ।
आपबीती अपने आप को
दोहरा रही है ।
नमी क्यो झलक रही है ?
कौन सी व्यथा की
ये लकीर खीँच रही है ।
किस दर्द भरी दास्ताँ को
बयां कर रही है ।
ऐ अजनबी ये तेरी आँखे ,
उदास लग रही है ।
खामोश निगाहें तुम्हारी
जुबां बन गई है ,
छिपाओ न और ज़ख्म
बहुत कुछ कह गई है ।
क्योकि हम सब के जो किस्से है ,
वही तो बुन रही है ।
आपबीती अपने आप को
दोहरा रही है ।
टिप्पणियाँ
बहुत खूब
बहुत सुन्दर !
ka khoob chitran kiya hai aapne apni
iss nazm meiN....
maun jab aankhoN ke khaalipan se jhaankta
hai to qreeb-qreeb sb bayaaN ho jata hai
bs...padhne wala hona chahiye...
---MUFLIS---
जुबां बन गई है ,
छिपाओ न और ज़ख्म
बहुत कुछ कह गई है ।
bhut sundar likha hai.
bhut khoob
बहुत ही सुन्दर और सरल है आपकी रचना ! मैं धीरे धीरे बाकी सब पोस्ट पढूंगी!
मुझे हिंदी बहुत ही पसंद है!
काश मैं भी लिख पाती मेरे ब्लॉग में लेकिन सबको समझ आये इसलिए मैं सिर्फ अंग्रेजी में लिखती हूँ!
अरुणा जी आप भी मेरी रचना की तरह सरल है और अच्छी इंसान भी .जो किसी की बात का मान बढाये वह कोई विशेष होता है .ऐसे लोगो की मैं बहुत इज्जत करती हूँ .अच्छा लगा आने से .