विवशता
एक दर्द तुम्हें जो देती हूँ,
सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ।
हालातों से बेबस होकर
कुछ फैसले ऐसे लेती हूँ।
ये न समझो केवल यह
तुम्हारे हिस्से मैं आया है,
जार-जार आसुंओं मैं डूब,
इसे मैंने भी अपनाया है।
अपनी नासमझी का परिचय,
जब अपनी समझ से देती हूँ,
दर्द भरी राहों पर कितनी बार
फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.
टिप्पणियाँ
dhnywad
aapne jo hosla bdhaya hai uske liye bhut bhut dhnwad.
ये न समझो केवल यह
तुम्हारे हिस्से मैं आया है,
जार-जार आसुंओं मैं डूब,
इसे मैंने भी अपनाया है।
bhut achhe bhav .kbhi kbhi jindgi me aise kshan jrur aate hai .fir bhi chlne ka nam hi to jindgi hai.
आप कबीरा के द्वारे आयीं प्रसन्नता हुई हर्दिक आभारी हूँ , धन्यवाद |
आप की सारी रचनाएँ तो अभी नहीं पढ़ा पाया हूँ , जीतनी पढ़ी सभी अपने मूड्स और शेड्स की ही लगी अपनो यानि बड़े बुजुर्गों , प्रियतम ,से मिला दर्द इसी क्रम में ज्यादा होता जाता है , छोटों और संतानों से मिला दर्द तो पूछिये ही मत !!!
" आईये एक दूसरे की विवशता समझें "
एक दर्द तुम्हें जो देती हूँ,
सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ।
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जार-जार आसुंओं मैं डूब,
इसे मैंने भी अपनाया है।
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दर्द भरी राहों पर कितनी बार
फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.||
मैं आप से ही पूछ रहा हूँ की इन बंदों में से किस की मैं तारीफ करूँ , किसे सर्व-श्रेष्ठ कहूँ ?
ऐसा न हो कि आप किसी और को सर्व श्रेष्ठ समझती हों और मैं किसी दूसेर बंद को सर्वश्रेष्ठ मान कर अपना नुकसान कर बैठूं [ अपना के प्रिय और गुणी प्रशंसक खो बैठूं ] ?
वैसे कहतें हैं कि अंतिम बंद ही सर्व श्रेष्ठ होता है ; वही ''संवेदनाओं भावनाओं का निचोड़ होता है |
यहाँ है भी ऐसा ही
'' दर्द भरी राहों पर कितनी बार
फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.''
क्या इतना दर्द पाने के बाद भी कहने को कुछ बाकी रह जाता है ?
सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ।
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दर्द यू ही तो नही दिये जाते. दर्द देने के लिये संवेदनहीनता चाहिये और संवेदनहीनता का दर्द दिये गये दर्द से बहुत ज्यादा होता है.
बहुत सुन्दर रचना
aruna ji ,aapke liye kya kahoon ?aap to achchhai ki paribhasha hai .kal vandana se main aapki tarif kar rahi thi .mera yakin galat nahi raha .bahut khushi hui .
आस लगाकर बालक पोसा
कंचन दूध पिलाया ,
हृदय से लगाकर हरदम
स्नेह का पाठ पढाया ,
माता -पिता का दोष नहीं है
कर्म लिखा फल पाया .
meri badhai sweekar karen..
Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
सुन्दर, शोधपरक, अनुभूति भरी प्रस्तुति पर हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
आपने शंका समाधान किया आभारी हूँ
एक दर्द तुम्हें हमने तो दिया
सौ दर्दों से हम भी तो गुजरे
हालात से थे मजबूर भी हम
जोकुछ गुजरा बस कर गुजरे
बस कर ना गिला तुझको ही मिला
अशकों को भी हमने पाया है
डूबे हैं हमारे भी दामन
खुद को भी तो हमने रुलाया है
नासमझी के आलम में भी समझ
जो समझा उसे समझा भी दिया
इन दर्द की बोझिल राहों पर
गिर गिर के संभल कुछ गा भी दिया
जब एक बूँद भी अपने पास नहीं होता है ।