विवशता


एक दर्द तुम्हें जो देती हूँ,

सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ

हालातों से बेबस होकर

कुछ फैसले ऐसे लेती हूँ

ये समझो केवल यह

तुम्हारे हिस्से मैं आया है,

जार-जार आसुंओं मैं डूब,

इसे मैंने भी अपनाया है

अपनी नासमझी का परिचय,

जब अपनी समझ से देती हूँ,

दर्द भरी राहों पर कितनी बार

फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.

टिप्पणियाँ

sandhyagupta ने कहा…
Ek stri ki manosthithi ko badi hi sanjidagi se chitrit kiya hai aapne.Badhai.
शोभना चौरे ने कहा…
jyoti ji
dhnywad
aapne jo hosla bdhaya hai uske liye bhut bhut dhnwad.
ये न समझो केवल यह
तुम्हारे हिस्से मैं आया है,
जार-जार आसुंओं मैं डूब,
इसे मैंने भी अपनाया है।
bhut achhe bhav .kbhi kbhi jindgi me aise kshan jrur aate hai .fir bhi chlne ka nam hi to jindgi hai.
ज्योति जी ,
आप कबीरा के द्वारे आयीं प्रसन्नता हुई हर्दिक आभारी हूँ , धन्यवाद |

आप की सारी रचनाएँ तो अभी नहीं पढ़ा पाया हूँ , जीतनी पढ़ी सभी अपने मूड्स और शेड्स की ही लगी अपनो यानि बड़े बुजुर्गों , प्रियतम ,से मिला दर्द इसी क्रम में ज्यादा होता जाता है , छोटों और संतानों से मिला दर्द तो पूछिये ही मत !!!
" आईये एक दूसरे की विवशता समझें "

एक दर्द तुम्हें जो देती हूँ,
सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ।
....................
जार-जार आसुंओं मैं डूब,
इसे मैंने भी अपनाया है।
. ........................

दर्द भरी राहों पर कितनी बार
फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.||


मैं आप से ही पूछ रहा हूँ की इन बंदों में से किस की मैं तारीफ करूँ , किसे सर्व-श्रेष्ठ कहूँ ?
ऐसा न हो कि आप किसी और को सर्व श्रेष्ठ समझती हों और मैं किसी दूसेर बंद को सर्वश्रेष्ठ मान कर अपना नुकसान कर बैठूं [ अपना के प्रिय और गुणी प्रशंसक खो बैठूं ] ?
वैसे कहतें हैं कि अंतिम बंद ही सर्व श्रेष्ठ होता है ; वही ''संवेदनाओं भावनाओं का निचोड़ होता है |
यहाँ है भी ऐसा ही
'' दर्द भरी राहों पर कितनी बार
फ़िर गिरती और सम्हलती हूँ.''


क्या इतना दर्द पाने के बाद भी कहने को कुछ बाकी रह जाता है ?
M VERMA ने कहा…
एक दर्द तुम्हें जो देती हूँ,
सौ दर्द से फ़िर मैं गुजरती हूँ।
=====
दर्द यू ही तो नही दिये जाते. दर्द देने के लिये संवेदनहीनता चाहिये और संवेदनहीनता का दर्द दिये गये दर्द से बहुत ज्यादा होता है.

बहुत सुन्दर रचना
ज्योति सिंह ने कहा…
आप सभी लोग अपने सुन्दर विचारोसे आकर मेरी कविता को सराहा इसके लिए तहे दिल से आभारी हूँ और क्या कहूं ?संध्या जी और शोभना जी आपसे कुछ विशेष कहना है जो आपके ब्लॉग पे ही आकर कहूँगी .यह नारी विशेष चर्चा है .आप लोगो के आने से ख़ुशी हुई .मिलते रहंगे यू ही .
सच लिखा............. दर्द देना भी आसान नहीं............. इक आग का दरिया होता है और तैर कर जाना होता है........... बहूत खूब
ARUNA ने कहा…
bahut badhiya jyoti ji....vaakai mein bahut dard hai is kavitaa mein!
ज्योति सिंह ने कहा…
kya baat kahi digambar ji ,shaandar tippani ,shukriya .
aruna ji ,aapke liye kya kahoon ?aap to achchhai ki paribhasha hai .kal vandana se main aapki tarif kar rahi thi .mera yakin galat nahi raha .bahut khushi hui .
ज्योति सिंह ने कहा…
अन्योनास्ती जी ,आपका शुक्रिया ,आप किसी खास पंक्ति की पसंद के बारे में कह रहे थे ,तो जो आपको पसंद है उसमे मेरा भी सहयोग है .वैसे भाव सभी सुन्दर होते है .आप संतान द्वारा दी हुई तकलीफों के बारे में कह रहे थे ,तो इस बात के जवाब को चंद पंक्ति में बयाँ करूंगी जो आगे है ---
आस लगाकर बालक पोसा
कंचन दूध पिलाया ,
हृदय से लगाकर हरदम
स्नेह का पाठ पढाया ,
माता -पिता का दोष नहीं है
कर्म लिखा फल पाया .
ज्योति सिंह ने कहा…
वंदना जी ,और वर्मा जी ,आप दोनों का भी धन्यबाद .
vijay kumar sappatti ने कहा…
jyoti ji dard ki itni gahri abhivyakti ... aapki lekhni ko salaam ..

meri badhai sweekar karen..
Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…
संवेदनशील व्यक्ति अपनी समझ से बुरा नहीं करता, पर समय और लोग उसके करती को गलत ठहरा देते हैं, गलत व्यक्ति बुरा करने के लिए सम्पूर्ण बुद्धि लगा कर और प्लान बना कर बुरा करता है और किसी को जाहिर भी नहीं होता, यही तो है नसीब अपना अपना.

सुन्दर, शोधपरक, अनुभूति भरी प्रस्तुति पर हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
के सी ने कहा…
आज कल आपका लेखन बड़ा प्रभावी हो रहा है कौनसा मौसम बुला रखा है घर में ?
Harshvardhan ने कहा…
achchi kavita lagi .....padvane ke liye shujria...
ज्योति जी ,
आपने शंका समाधान किया आभारी हूँ
RAJ SINH ने कहा…
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति. सब तो कहा जा चुका है . हम ही देर से आये .सभी शेर मन छूने वाले.

एक दर्द तुम्हें हमने तो दिया
सौ दर्दों से हम भी तो गुजरे

हालात से थे मजबूर भी हम
जोकुछ गुजरा बस कर गुजरे

बस कर ना गिला तुझको ही मिला
अशकों को भी हमने पाया है

डूबे हैं हमारे भी दामन
खुद को भी तो हमने रुलाया है

नासमझी के आलम में भी समझ
जो समझा उसे समझा भी दिया

इन दर्द की बोझिल राहों पर
गिर गिर के संभल कुछ गा भी दिया
ज्योति सिंह ने कहा…
bahut khoob raj ji .shukriya .aap se to gyan ki roshni bhi mil rahi hai .aapke dhang me iska rang nikhar gaya .shayad main dobara sochati to iska roop badal sakata tha .magar waqt ki tangi hai .likhana hi mushkil hai .chalate -phirate hi waqt churana padata hai .kash sambhav hota to is vishaye par tuition leti aapse .
ज्योति सिंह ने कहा…
आब ए तिश्नगी का बुरा हाल होता है
जब एक बूँद भी अपने पास नहीं होता है ।

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