आस.....
मैं  भी  तुम्हारी  तरह  
तंगदिल  होती  ,
और  यही  चाहत  पालती  ,
प्यासे  को  बिन  मांगे  
पानी  मिल  जाये ,
मैं मांग  के  पीता नही 
इसका  अर्थ  ये तो 
हरगिज नही  
कि मैं प्यासा नही । 
ऐसी  ख्वाहिशों  पे  क्या 
रिश्तों की उम्र  होती  यही  ,
जो  आज  है  कही  । 
एक  दूजे  से  पीने  की 
आस में ,
 प्यासे  रह  जाते
इजहार  भी  न  होता  
सपने  बुनने  से  पहले  
उधड़ जाते  । 
 
 
टिप्पणियाँ
रिश्तों की उम्र होती यही ,
जो आज है कही ।
बहूत खूब कहा आपने ....सुंदर कविता
शिव सरीखों के साथ हमेशा से ही ऐसा ही होता आया है, और यही नियति है.
सुन्दर चित्रण...........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
आस में ,
प्यासे रह जाते
इजहार भी न होता
सपने बुनने से पहले
उधड़ जाते ।
दिल की बात को कह देना अच्छा है
चाहे सपने बुनने से पहले ही उधड़ जाएं
सुंदर भाव अभिव्यक्ति ... सुंदर काव्य !