रविवार, 11 अक्तूबर 2009

आस.....

मैं भी तुम्हारी तरह

तंगदिल होती ,

और यही चाहत पालती ,

प्यासे को बिन मांगे

ानी मिल जाये ,

मैं मांग के पीता नही

इसका अर्थ ये तो

हरगिज नही

कि मैं प्यासा नही

ऐसी ख्वाहिशों पे क्या

रिश्तों की उम्र होती यही ,

जो आज है कही

एक दूजे से पीने की

आस में ,

प्यासे रह जाते

इजहार भी होता

सपने बुनने से पहले

उधड़ जाते

11 टिप्‍पणियां:

Sahil ने कहा…

ऐसी ख्वाहिशों पे क्या
रिश्तों की उम्र होती यही ,
जो आज है कही ।
बहूत खूब कहा आपने ....सुंदर कविता

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

jyoti ji, bahut sunder abhivyakti hai ye...........rishton par . badhai.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जो चुप होते हैं,उनसे लोग उदासीन होते हैं....पर प्यास उनकी भी होती है.......बहुत बढिया

ज्योति सिंह ने कहा…

yogesh ji ,sahil ji ,rashmi ji tahe dil se aabhari hoon .

मनोज कुमार ने कहा…

चित्रण की सूक्ष्मता और रूढ़ियों से मुक्ति की अकांक्षा परिलक्षित होती है।

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

शिव को सदा ज़हर ही पीने को आगे आना पड़ा है , यही शाश्वत सत्य है. बाकि सब सुविधा भोगी है............

शिव सरीखों के साथ हमेशा से ही ऐसा ही होता आया है, और यही नियति है.

सुन्दर चित्रण...........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

मनोज भारती ने कहा…

एक दूजे से पीने की
आस में ,
प्यासे रह जाते
इजहार भी न होता
सपने बुनने से पहले
उधड़ जाते ।

दिल की बात को कह देना अच्छा है
चाहे सपने बुनने से पहले ही उधड़ जाएं

सुंदर भाव अभिव्यक्ति ... सुंदर काव्य !

Murari Ki Kocktail ने कहा…

waah adbhut सपने बुनने से पहले ही उधड जाते हैं !!

ज्योति सिंह ने कहा…

manoj ji, manoj bharti ji ,chandra mohan ji avam murari ji aap sabhi ka shukriyaan .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SUNDAR LIKHA HAI .... RISTON KI UMR .... KYA SACHMUCH HOTI HAI ... GAZAB KA LIKHA HAI ..

Sanjay Grover ने कहा…

bhai yahaN to vyavharik boldness ka masla utha diya aapne.