बगावत ..
पर  तो  निकले  नही  ,
उड़ना  हमें  आया  नही  ।
चलना  जरूर  सीखा, पर 
रास्ता  नज़र  आया  नही  ,
राह  जब  हम  ढूँढने  लगे  
एतराज  सबने  जताया  यूँ  ही ,
वेवजह  की बातों  में  
हमें  सताया  भी  यूँ ही  ,
'आह  को चाहिए  एक 
उम्र  असर  होने  तक ',
यही  ख्याल  लिए  फिर  
इरादों  ने कदम  बढ़ाया वही  ,
तंग आकर  तानो  से  
जाग उठी, जोश  में  बगावत  भी । 
 
 
टिप्पणियाँ
मजबूर हैं तो इसके ये मानी नहीं हुए,
हमको हर जुल्म गवारा हो गया।
रचना का अंत काफी प्रभावशाली है, विद्रोह के तेवर और मुखर हो गए हैं।
जलो दीप बन.
तिमिर पान कर
अमर रहो..
कुछ दीये खरीदने हैं,
कामनाओं की वर्तिका जलानी है .....
स्नेहिल पदचिन्ह बनाने हैं
लक्ष्मी और गणेश का आह्वान करना है
उलूक ध्वनि से कण-कण को मुखरित करना है
दुआओं की आतिशबाजी ,
मीठे वचन की मिठास से
अतिथियों का स्वागत करना है
और कहना है
जीवन में उजाले - ही-उजाले हों
एक उम्र असर होने तक"
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तंग आकर तानों से
जग उठी जोश में बगावत भी.
बहुत खूब... शायद
गूंज उठे क्यूँ न गगन में,
विद्रोह की स्वर लहरी
का एक और सुधार और सार्थक स्वरुप.
हार्दिक बधाई इस अच्छी कविता के लिए और साथ ही मंगलमय दीपावली की भी.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को दिपावली की शुभकामनाये
उम्र असर होने तक ',
यही ख्याल लिए फिर
इरादों ने कदम बढ़ाया वही ,
तंग आकर तानो से
जाग उठी, जोश में बगावत भी
बेहतरीन कविता ...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
आपको व आपके शभी परिजनों को
एक अर्शे के बाद फिर ब्लॉग जगत की दुनिया में वापसी हुयी .कुछ और जिम्मेदारियों में मशगूल था .आगे पीछे सब पढ़ा. आपकी रचनाओं में वही संवेदनाएं मुखर बन चली हैं जो मानव मन को तरंगित करती रहती हैं.
दीप पर्व की अनंत शुभकामनायें .