मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

पाक सा रिश्ता

है , तुम्हारे यकीं से

मेरा विश्वास जुड़ा

तुम्हारी अदा है

सबसे जुदा ,

चाहूँ भी कुछ

छिपाना तुमसे

छिपाना मुश्किल है जरा ,

चाहने से भी हमारे

कुछ होगा भी कहाँ ,

इस पाक रिश्तें का साथ

दे रहा हो जब ख़ुद खुदा

ये ख्याल लिए

भीनी सी हँसी

बिखेर देती है ,जुबां ।



13 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

bahut sunder rachana lagee aur kuch hatke bhee .

Urmi ने कहा…

वाह अत्यन्त सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचनाएँ मुझे बेहद पसंद है!

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना। बधाई।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

is pak rishte ka saath............bikher deti hai juban.

bahut khoob, sunder abhivyakti.

के सी ने कहा…

इस बार सहज और सुंदर कविता... बधाई !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आपके एहसास बड़े कोमल , नाज़ुक से लगते हैं

रचना दीक्षित ने कहा…

इस पाक रिश्तें का साथ
दे रहा हो जब ख़ुद खुदा ।
मन को छू गयी ये पंक्ति
बधाई

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सरलता से कही गई अपनी बात. सुन्दर.

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत ही सहज और सुन्दर कविता लिखी है आपने

राज भाटिय़ा ने कहा…

ये ख्याल लिए
भीनी सी हँसी
बिखेर देती है ,जुबां ।
क्या बात है बहुत अच्छी रचना

अर्कजेश ने कहा…

बहुत खूब । विश्‍वास से यकीं का जुडा होना बेहद जरूरी है ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जब अंतर्मन मान रहा है तो फिर काहे की फ़िक्र ....... लाजवाब रचना है .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।