विरक्ति
थक गई ,हर वक्त
रिश्तें को बचाते -बचाते
और अनेको बार
हो गई घायल ,
इसकी हिफाजत में
लड़ते - लड़ते ।
जीत पाने की तमन्ना
हर मोड़ पर हराती गई ,
चक्की में घूमा -घूमा
हालात को पीसती गई ,
विरक्त हुआ मन
आ सब छोड़ चले ,
हर किसी को यहाँ
अपने हाल पे रहने दे ।
टिप्पणियाँ
आ सब छोड़ चले ,
हर किसी को यहाँ
अपने हाल पे रहने दे।
ज्योति जी अक्षर शः सत्य है ये बात । आज के परिपेक्ष्य में जितना लोगों को उनके हाल पे छोड़ देंगे उतना ही आप तनाव मुक्त होंगे । पर इस पर अमल करने में वक्त लग सकता है
बहुत ही सुन्दरता और सरलता से अपने मन के भावो को उकेर दिया है |
आभार
sunder rachana .
हर किसी को यहाँ
अपने हाल पे रहने दे
bahut khoob n SHUKRIYA BHEE MITR !!
आ सब छोड़ चले ,
हर किसी को यहाँ
अपने हाल पे रहने दे...बहुत खूब 👌
बहुत सुंदर रचना प्रिय ज्योति जी।
सस्नेह
सादर।
हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए।
आ सब छोड़ चले ,
हर किसी को यहाँ
अपने हाल पे रहने दे।
बचाव की इस जद्दोजहद का फायदा उठाते है रिश्ते ...
अपनी मनमानी पर उतर आते हैं रिश्ते
टूटने का डर जिन्हें न हो वो अपने ही कहाँ
फिर हालात पर छोड़ देना ही बेहतर है ऐसे रिश्ते
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।