मुमकिन .....
मेरी जिंदगी में
क्या हो तुम ,
ये शब्दों में
नही बाँधा
जा सकता ।
कागज़ पर
नही उतारा
जा सकता ।
ये शिरी -फरहाद
या लैला -मजनूँ
के किस्से नही ,
जिसे सरेआम
बयां कर दिया ,
उन्हें तो रास्ते
नही मिले ।
यहाँ तो रास्ते भी है
मंजिल भी
दिलो के गहरे
इरादे भी ,
तो देर किस बात की
चलो छू ले मंजिल ,
रास्ते तो यहाँ है सब
लगभग मुमकिन ही ।
टिप्पणियाँ
rachna ki antim pankti sarthak he..
यहाँ तो रास्ते भी है
मंजिल भी
दिलो के गहरे
इरादे भी ,
तो देर किस बात की
चलो छू ले मंजिल ,
रास्ते तो यहाँ है सब
लगभग मुमकिन ही ।
यहाँ तो रास्ते भी है
मंजिल भी
दिलो के गहरे
इरादे भी ,
तो देर किस बात की
चलो छू ले मंजिल ,
रास्ते तो यहाँ है सब
लगभग मुमकिन ही ।
wah.
ये आरज़ू कैसे रुके..
बस इसी इरादे की तो ज़रूरत है..आमीन.
चलो छू ले मंजिल ,
रास्ते तो यहाँ है सब
लगभग मुमकिन ही
क्या बात है ज्योति जी हर बार मेरे मन की बात कह डालती हैं. जरूर कुछ तो रिश्ता होगा हमारे बीच. शब्द हमेशा ही कम पड़ जाते है इस सुंदर अहसास को व्यक्त करने के लिए.अब अच्छा है ये कविता काम आ जायेगी जब मुहं से कुछ न बोलना हो
ये आरज़ू कैसे रुके..
बस इसी इरादे की तो ज़रूरत है..आमीन.
लगभग मुमकिन नामुंमकिन जैसा हो जाता है ।
हर बार आप सहजता से कह जाती हैं ।
मंजिल भी
दिलो के गहरे
इरादे भी ,
तो देर किस बात की
चलो छू ले मंजिल ,
रास्ते तो यहाँ है सब
लगभग मुमकिन ही...
कई बार शब्दों में बाँधना बहुत मुश्किल होता है .......... वैसे रिश्तों को शब्दों में बाँधने की ज़रूरत भी क्या है ...... सफ़र में चलते रहना ही ठीक है ..... बहुत अच्छी रचना है ........