फिर वही राह
एक नई रौशनी के साथ
हर सुबह जागती है ,
दिल में , फिर कोई उम्मीद
अपनी जगह बनाती है ,
शायद, दिन ढलते -ढलते
यकीं दस्तक दे जाये ,
इन्ही खयालो की दास्ताँ
हर लम्हा बुनती है ,
आहिस्ता -आहिस्ता
रात के ढलने के साथ ,
एक बार फिर टूटती है ।
भाग्य की रेखा के साथ
नया आसरा ढूंढती हुई ,
लकीरों से समझौता कर
फिर वही राह पकड़ लेती है ।
टिप्पणियाँ
amjhota hi samnjasy bnata hai rishto me .
नया आसरा ढूंढती हुई ,
लकीरों से समझौता कर
फिर वही राह पकड़ लेती है ।
जीवन की अभिव्यक्ति का सच।
हर शाम एक उम्मीद जगती है
हर रात एक सपना देखा जाता है
यूँ ही एक ना उम्मीद सांझ, रात के बाद
एक महफूज़ सी सुबह निकलती है
gahre bhaav
,