मन
अथाह सागर में उफनता
अशांत लहरों सा ये मन मेरा ।
जीवन की इन उलझनों को
सुलझाता हुआ ये मन मेरा ।
इस उधेड़ -बुन के जाल में
फंस कर रह गया ये मन मेरा ।
-------------------------------------
नींव की पुनरावृति कर
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे ।
अतीत को वर्तमान सा न बनाओ
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे ।
टिप्पणियाँ
Har rachna achhee hoti hai aapki! Kamaal hai!
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे ।
अतीत को वर्तमान सा न बनाओ
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे ।
अतीत की गांठे मजबूत होती जाती हैं उन्हें जितना खोलो वो उतना ही कस कर हमें अपने से और ज्यादा जोड़ने लगती हैं हमेशा की तरह एक अच्छी रचना
man hi to vichitra hota he ji, aour sachmuch fansaa hi rahta he..
bahut achhe shabdo me aapne apani rachna kaa aadhar banayaa he.
par mujhe behad intzar hai ek khushnuma ehsas kee kavita ka .dero shubh kamnao ke sath aapakee blogger friend.
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे ।
अतीत को वर्तमान सा न बनाओ
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे ....
बहुत ही कमाल की रचना .... नयी सोच से उभरी लाजवाब रचना है .......
Maa pe yaad karaya geet bhi behad sundar hai!
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे
अथाह सागर में उफनता
अशांत लहरों सा ये मन मेरा ।
Man waaqayi me aisahee hota hai..!Dono rachnayen bahut khoob!
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे ।...
वाह वाह ज्योति जी क्या बात लिखी है!
बहुत सुंदर कविता.
[haan माफी चाहूँगी..मैं आप को समय से आप की शादी की सालगिरह की बधाई नहीं दे पाई,अभी आप को बहुत सारी बधाईयाँ और शुभ कामनाएँ प्रेषित करती हूँ,कृपया स्वीकार करें.
ईश्वर आप दोनो को हमेशा स्वस्थ और खुश रखे.]