दिल ........
दिल का क्या
चाँद पे जाना चाहता है ,
दिल की क्या कहे
आसमान छूना चाहता है ,
दिल तो है
अस्थिर खयालो से भरा ,
कुछ पाना तो
कुछ खोना भी चाहता है ,
दिल तो दिल है
डोल भवर में जाता है ,
भाग्य -वक़्त के आगे
बेबस सा हो जाता है ,
फूलो सा नाजुक
लहरों सा चंचल ,
बेचारा दिल ये
बेबस सा रह जाता है ,
दिल तो आखिर दिल है
उलझन में पड़ जाता है ।
टिप्पणियाँ
तो आज ना यहाँ ब्लॉग पे हमारी
कहानी होती..
हम मना लेते अपने दिल को हर दुःख में
हर ख़ुशी ना हम से रूठ के बेगानी होती.
ज्योति जी आपकी ये रचना मन को मोह गयी.
बहुत खूब. बधाई.
दिल का ऐतबार
क्या कीजै ........!!
पर अगर ये दिल न हो तो सपने कैसे होंगे ........ जीवन कैसे होगा ....... सुंदर रचना है .........
khoobsurat khayal acchi adaygii
daad kubool karen
नव वर्ष पर आप व् आपके परिवार को हार्दिक बधाई