मानवता का स्वप्न



कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य


सर्वोदय की कल्पना ,


बुनता हुआ विचार,


स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,


खंडित करता , फिर


उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,


नवोदय का आधार


फिर भी आंखों में अन्धकार


इच्छाओं की साँस का


घोटता हुआ दम ,


अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण


भाव - विह्वल हो कांपता ,


अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,


टूट कर भी निःशब्द ,


मानवता का 'स्वप्न '

टिप्पणियाँ

Ra ने कहा…
बस ..बहुत ही गहरी बात कह गयी ...आप ,,,अच्छी लगी

http://athaah.blogspot.com/
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
andaaj kuch alag hai aap ka aaj..
Apanatva ने कहा…
gahtaee liye bhavo kee sunder abhivykti........
Apanatva ने कहा…
lagata hai aap vyst rahee bahut dino se koi post nahee thee blog par...........
Swasthy ka dhyan rakhiyega........
मनोज कुमार ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना|
सच ही मानवता का दुर्भाग्य ही है....फिर भी अंधेरों में कहीं ना कहीं चमक की रोशनी बाकी है....बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ये खंडित मानवता का स्वप्न, कभी पूर्ण होगा ये लगता नहीं है, मर्म को स्पर्श करने वाली अभिव्यक्ति ने भावविभोर कर दिया.

रेखा श्रीवास्तव

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बहुत सुन्दर कविता. वैसे इतने लम्बे अन्तराल का कारण जान सकती हूं?
kshama ने कहा…
Bahut,bahut sundar..dilme utarti hui..aur kya kahun?
सर्वोदय की कल्पना बुनता हुआ विचार,

स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,

खंडित करता , फिर...उधेड़ देता लोगों का विश्वास.....
ज्योति जी,
हृदय की भावनाओं को
प्रभावशाली शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने.
बधाई स्वीकार करें.
Alpana Verma ने कहा…
भाव - विह्वल हो कांपता ,

अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,

टूट कर भी निःशब्द ,

मानवता का 'स्वप्न ' ।

-बहुत अच्छी कविता है ज्योति जी.
अकुलाता भ्रमित स्पर्श ........ विलक्षण प्रयोग ।
रचना बहुत कुछ कहती है ।
शरद कोकास ने कहा…
बहुत सोच कर लिखी गई रचना है गहरे अर्थ लिये ।
ज़मीर ने कहा…
नमस्कार, बहुत दिनों के बाद इस तरह कि कविता पढ्ने को मिली.धन्यवाद.
आपकी यह कविता पढ़कर टिप्पणी नहीं हो रही ...........................................काफी लम्बे अंतराल के बाद आपने लिखा .............मुझे भी कुछ कहने में वक़्त लगेगा...............

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