मंगलवार, 11 मई 2010

एक वो रात


वो राते लम्बी होती है

जब तन्हाई डसती है ,

यादे बोझिल होती है

तब ये नींद कहाँ पे सोती है ,

ये रात जो मुझ पे भारी है

आँखों-आँखों में कटती है ,

करवट की आहट होती है

लिए दर्द मचलती रहती है ,

नींद को तलाशते ,

आँखों में सुबह होती है ।

15 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Aapki rachnayen din prati din nikharti jaa rahi hain..Mauzoom shabdawali aur pravah,dono eksaath..!

संजय भास्‍कर ने कहा…

मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता

Apanatva ने कहा…

baichenee ka ehsaas liye dil ko choo jane walee abhivykti......

मनोज कुमार ने कहा…

ये रात जो मुझ पे भारी है
आँखों-आँखों में कटती है ,

रात के बाद सुबह आती है।

नींद को तलाशते ,
आँखों में सुबह होती है ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी.
धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरती से सहेजे हैं एहसास

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सारी रात न जाने ये नींद कहाँ सोती है आँखों से दूर !

रचना दीक्षित ने कहा…

ये नींद कहाँ पे सोती है?????
अच्छे हैं मन के ये उद्दगार उदगारनिरुत्तर ही कर दिया

Alpana Verma ने कहा…

ये नींद कहाँ पे सोती है ??
यही सवाल है ...और जवाब सुबह तक बस ढूंढते हैं !

sandhyagupta ने कहा…

Akelepan ke ehsas ko ukerti sundar rachna.badhai.

Ra ने कहा…

सम्पूर्ण रचना अच्छी लगी ..सुन्दर भावो की अभिव्यक्ति .....बहुत खूब ....धन्यवाद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Sach hai itezaar ki raaten bahut hi lambee hoti hain ... tanhaai use aur lamba kar deti hai ... lajawaab ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

तन्हाई के लम्हों का प्रभावशाली वर्णन.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता...प्यारा चित्र भी..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...

Parul kanani ने कहा…

sundar panktiyaan!