छोटी छोटी रचनाये
जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
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हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ।
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वफ़ा तब मोड़ लेती है
जमाने के आगे ,
न जलते हो कोई जब
उम्मीदों के सितारे ।
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उन आवाजो में पड़ गई दरारे
जिन आवाजो के थे सहारे ।
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अपनो के शहर में
ढूँढे अपने ,
पर मिले पराये और
झूठे सपने ।
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अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ ,जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।
टिप्पणियाँ
khushee ise baat ki bhee hai ki aap ne sambhal kar rakha....varna hum vanchit hee rah jate.
Aabhar
किसी के आग्रह पर और पाठकों को भी मिलीं रचनाएँ पढने के लिए ...'
अनामिका जी को शुक्रिया
शुक्रिया अनामिका
पर मिले पराए और झूठे सपने
बहु खूब...सुंदर पंक्तियां है ।
कल भी और आज भी...
बधाई.
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
Mashallah.
यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ...
बहुत सटीक कहा है .... दिन गुज़रता है ... शाम होती है ... जिंदगी यूँ ही तमाम होती है ....
bahut sundar rachnaye hai matlb ab to aap nikhar par hai .
bahut khoob
jbbhi aisa kuchh samne likha milta hai to bar bar use dohrane ka mn krta hai .
shukriya .
अब आपको भी बुलाना पडेगा क्या अपने ब्लाग पर...! वैसे ही मुझ निर्धन के यहाँ इक्का-दुक्का लोग आते है आप कुछ समर्थन कर देती है तो मनोबल बढ जाता है...
आभार सहित
डा.अजीत
दसवीं ग्यारहवीं में भी इतना सुन्दर लिखा करती थीं आप..क्या बात है ज्योति!बधाई.
जिन आवाजों के थे सहारे
ऐसे कटु अनुभव का अहसास इतनी कम उम्र में, तब तो ता जिंदगी रचनाओं की सरिता बहती रहेगी,
कहा गया है....
वियोगी रहा होगा पहला कवि.....
सुन्दर, पूर्व की, पर कालातीत रचनाओं पर हार्दिक बधाई..........
चन्द्र मोहन गुप्त