सोमवार, 27 सितंबर 2010
छोटी छोटी रचनाये
जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
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हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ।
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वफ़ा तब मोड़ लेती है
जमाने के आगे ,
न जलते हो कोई जब
उम्मीदों के सितारे ।
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उन आवाजो में पड़ गई दरारे
जिन आवाजो के थे सहारे ।
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अपनो के शहर में
ढूँढे अपने ,
पर मिले पराये और
झूठे सपने ।
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अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ ,जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।
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30 टिप्पणियां:
WAH, 10 WEE 11 WEE ME ITANA ACHCHA LIKHATI THEEN BAHUT SUNDER.
WAH, 10 WEE 11 WEE ME ITANA ACHCHA LIKHATI THEEN BAHUT SUNDER.
आगे आगे देखिये होता है क्या जब बचपन में यह हाल......बधाई
bahut sunder rachanae hai.........
khushee ise baat ki bhee hai ki aap ne sambhal kar rakha....varna hum vanchit hee rah jate.
Aabhar
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
बेशक लिख्क़ने मे छोटी रचना है मगर लेकिन भाव मे बहुत बडी है। छोटी सी उम्र मे इतना सुन्दर्! वाह। बधाई।
बहुत सुन्दर रचनाएँ ...
किसी के आग्रह पर और पाठकों को भी मिलीं रचनाएँ पढने के लिए ...'
अनामिका जी को शुक्रिया
वाह बचपन में इतना अच्छा लिख लेती थीं बधाई
शुक्रिया अनामिका
बहुत सही रचनाएं है...
वाह …………………बहुत ही सुन्दर हैं।
बड़ी सुन्दर रचनायें।
अपनों के शहर में ढूंढे अपने
पर मिले पराए और झूठे सपने
बहु खूब...सुंदर पंक्तियां है ।
बहुत ही खुबसुरत, रचनाऎ धन्यवाद
सभी क्षणिकाएं प्रभावित करती हैं.इतनी कम उम्र में भी आप इतना अच्छा लिखती थीं!
छोटी छोटी किन्तु प्रभावी रचनायें..बहुत बधाई.
बहुत अच्छी लगी आज की रचनाएं ...
बहुत खूबसूरत लिखती हैं आप...
कल भी और आज भी...
बधाई.
जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
Mashallah.
सुंदर रचना
यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ...
बहुत सटीक कहा है .... दिन गुज़रता है ... शाम होती है ... जिंदगी यूँ ही तमाम होती है ....
vah jyotiji
bahut sundar rachnaye hai matlb ab to aap nikhar par hai .
bahut khoob
छोटी छोटी मगर अच्छी अच्छी ।
aavajo me draro ka pdna , bhut hi ghri soch , pathk ko bhi sochne pr mjboor kr dene layk ehssas .
jbbhi aisa kuchh samne likha milta hai to bar bar use dohrane ka mn krta hai .
shukriya .
उम्दा रचना...
अब आपको भी बुलाना पडेगा क्या अपने ब्लाग पर...! वैसे ही मुझ निर्धन के यहाँ इक्का-दुक्का लोग आते है आप कुछ समर्थन कर देती है तो मनोबल बढ जाता है...
आभार सहित
डा.अजीत
कंाटे भरी राह में जिन्दगी गुजारना एसा लगता है ’’ जिन्दगी से बडी सजा ही नहीं , और क्या जुर्म है पता ही नहीं’’ इन्सानो के शोर में आवाज विलीन हो जाती है । यह कितनी सटीक बात है कि जब उम्मीद का कोई सितारा जलता हुआ न हो तो वफा भी मुह मोड लेती है। जिन आवाजों का सहारा था उन्ही में दरारे पड गर्इ्र यह भी छोटी सी मगर बहुत उम्दा है
वाह! वाह!
दसवीं ग्यारहवीं में भी इतना सुन्दर लिखा करती थीं आप..क्या बात है ज्योति!बधाई.
उन आवाज़ों में पड़ गयी दरारें,
जिन आवाजों के थे सहारे
ऐसे कटु अनुभव का अहसास इतनी कम उम्र में, तब तो ता जिंदगी रचनाओं की सरिता बहती रहेगी,
कहा गया है....
वियोगी रहा होगा पहला कवि.....
सुन्दर, पूर्व की, पर कालातीत रचनाओं पर हार्दिक बधाई..........
चन्द्र मोहन गुप्त
आपतो उस वक्त भी बहुत अच्छी रचनाएँ लिखती थी ...
चलो इस बहाने तुम्हारी लड़कपन की रचनाये तो पढ़ने को मिले...शुक्रिया बहुत बहुत.
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