जिंदगी हादसों की शिकार हो गईं
चन्द रोज की यहां मेहमान हो गई।
न कोई आता है न कोई जाता है
सड़के कितनी सुनसान हो गई ।
सहमा -सहमा सा है हर एक मन
दूर रहने की शर्ते साथ हो गई ।
कोरोना का ढाया ऐसा कहर
आज की जिंदगी बर्बाद हो गई ।
कब पायेंगे निजात इस आफत से
यही फिक्र अब तो दिन रात हो गई ।
आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।
6 टिप्पणियां:
बढ़िया कोरोना कविता 👍
वाह....सुंदर
कोरोना ही दिन, कोरोना ही रात हो गई
अब तो ये महामारी जल्दी ख़त्म हो तो ही कुछ अलग सोच समझ सकें | सब कुछ आज इसी बीमारी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गया है | सामयिक और सार्थक पंक्तियाँ
Wah Jyoti
Sabke man ki bat kah dalsunder
आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।
सच है !
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