शुक्रवार, 22 मई 2020

ओस



ओस की एक बूँद

नन्ही सी

चमकती हुई

अस्थाई क्षणिक

रात भर की मेहमान ___

जो सूरज के

आने की प्रतीक्षा

कतई नही करती ,

चाँद से रूकने की

जिद्द करती है ,

क्योंकि

दूधिया रात मे

उसका वजूद जिन्दा

रहता है ,

सूरज की तपिश

उसके अस्तित्व को

जला देती है ।

ज्योति सिंह

14 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बढ़िया ।

अजय कुमार झा ने कहा…

सरल व प्रभावी ओस की एक बूंद के इर्द-गिर्द सुंदर ताना-बाना बुना आपने आभार

Jyoti Singh ने कहा…

आपका हार्दिक आभार

Jyoti Singh ने कहा…

आपकी सभी की टिप्पणियों से मन का उत्साह दुगुना हो जाता है ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Seema Bangwal ने कहा…

बढ़िया

पवन शर्मा ने कहा…

वाह....वाह...!

Jyoti Singh ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद पवन जी

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर. सूरज के बिना चाँद कुछ भी नहीं.

Jyoti Singh ने कहा…

आपका हार्दिक आभार सीमा जी

Jyoti Singh ने कहा…

आपका हार्दिक आभार शबनम जी

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी जी.
सादर

Jyoti Singh ने कहा…

धन्यवाद अनिता बहन

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पल भर का वजूद पर ज़िंदगी जी लेती हैं ओस की बूँदें ...

Jyoti Singh ने कहा…

वाह कितना सुंदर कहा है आपने ,प्यारी सी टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।