कब तक और ____
कहाँ तक
इन्तजार में खड़े रहकर
तुम्हारे सहारे को तकते रहें __
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर ।
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू ।
इतना ही काफी है
जो तुमने खड़ा कर दिया ___
दौड़ भले न पाऊं
तुम्हारे बगैर ,
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।
12 टिप्पणियां:
खुद में हौसला रखना ज़रूरी है ।दौड़ ही क्या उड़ने भी लगेंगी ।बहुत भावपूर्ण रचना ।
सुन्दर रचना
यथार्थ को स्वीकारते सटीक उद्गार।
वाह
बहुत सुंदर सृजन
बधाई
आत्मविश्वास बहुत जरुरी है
बहुत सुंदर।
बहुत सुंदर रचना
वाह! आत्मविश्वास से भरा सराहनीय सृजन।
भावमय करते शब्दों का संगम ...
आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद, हार्दिक आभार , यू ही हौसला बढ़ाते रहे , साथ निभाते रहे मित्रों, नमस्कार
बहुत सुंदर।
बहुत सुंदर.. ज्योति जी, आपकी यह कविता अंतर्मन को छूती हुई व्यथित मन को हौसला भी दे गई ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें..सादर नमन..
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