गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

कब तक.....

कब तक और ____
कहाँ तक
इन्तजार में खड़े रहकर
तुम्हारे सहारे को तकते रहें __
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर 
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू 
इतना ही काफी है
जो तुमने खड़ा कर दिया ___
दौड़ भले  पाऊं
तुम्हारे बगैर ,
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी 

12 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खुद में हौसला रखना ज़रूरी है ।दौड़ ही क्या उड़ने भी लगेंगी ।बहुत भावपूर्ण रचना ।

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

मन की वीणा ने कहा…

यथार्थ को स्वीकारते सटीक उद्गार।

Jyoti khare ने कहा…

वाह
बहुत सुंदर सृजन
बधाई

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आत्मविश्वास बहुत जरुरी है

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

अनीता सैनी ने कहा…

वाह! आत्मविश्वास से भरा सराहनीय सृजन।

संजय भास्‍कर ने कहा…

भावमय करते शब्‍दों का संगम ...

ज्योति सिंह ने कहा…

आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद, हार्दिक आभार , यू ही हौसला बढ़ाते रहे , साथ निभाते रहे मित्रों, नमस्कार

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर.. ज्योति जी, आपकी यह कविता अंतर्मन को छूती हुई व्यथित मन को हौसला भी दे गई ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें..सादर नमन..