शनिवार, 10 अप्रैल 2021

धरती की हूँ मैं धूल


धरती की हूँ मै धूल


गगन को कैसे चूम पाऊँगी


उड़ाये जितनी भी आंधियाँ


तो भी आकाश  छू पाऊंगी


 जुड़ी हुई हूँ मै  जमीन से


किस तरह यह नाता तोडू ,


अम्बर की चाहत में बतला


किस तरह यह दामन छोड़ू 
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6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जमा के रखो पैर ज़मीं पर
जो आँधियाँ न उड़ा सकें
हौसला इतना हो मन में
कि गगन चूम सकें ।

मैथली शरण गुप्त जी ने कहा है कि नर हो न निराश करो मन को

ज्योति सिंह ने कहा…

हार्दिक आभार

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सच में जमीन से जुड़ी हुई सुंदर रचना ।

Amit Gaur ने कहा…

आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना!!!

Zee Talwara ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना!!! Free me Download krein: Mahadev Photo