नखरे बहार के

बेख्याल होकर गुजर गये
बेसबब ही यहाँ जी गये ,
किस राह को हम निकले
किस राह को चले गये ,
लिए किस तलाश को
बांधे किस आस को ,
किस तलब की प्यास है
जुस्तजू क्या कोई ख़ास है ,
बेखबर ख़ुद से होकर
बहका रहे चाह को ,
होश अपने खो बैठे
चढ़ा के खुमार को ,
गम अज़ीज़ हो गया
खुशी को नकार के ,
हार गये जब हम
उठा के नखरे बहार के ।

टिप्पणियाँ

के सी ने कहा…
इस बार तो आपने कमाल ही कर दिया है, वैसे आपकी सब रचनाएँ अच्छी होती है पर इसने बहुत प्रभावित किया है.
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
wah , jyoti ji , bahut umda likha hai.

gam ajij ho gaya khushi ko nakar ke. wah.
गम अज़ीज़ हो गया
खुशी को नकार के ,
हार गये जब हम
उठा के नखरे बहार .
बहुत शानदार. इसी तरह लिखतीं रहें. बधाई.
ज्योति सिंह ने कहा…
vandana ji ,kishore ji ,swapn ji aap sabhi logo ko tahe dil se shukriya .
अहसास को चिंतन की कडाही में खूब पकने दें, फिर लिखें. आपकी रचनाएँ पढीं शब्द-रचना अच्छी है, और भाव भी झलकते हैं, Badhai. जब विचारों का उबाल अत्यधिक हो जायेगा, तो लिखी गयी पंक्तियाँ पुष्ट और कासी हुई होंगी. आपको मेरी कविता अच्छी लगी तो समझिये मैं खुश हुआ ! शुभकामनायें...
ज्योति सिंह ने कहा…
namaskar , aanand ji aap mere blog pe aaye main isi me dhanya ho gayi .saath hi maargdarshan kar hausala bhi badhaya .bahut gyan ki baate batai aapne .is salah pe chalne ki koshish rahegi .aap jaise sahityakaro ka aashish mil jaye kafi hai .tahe dil se aapko dhanyawaad .
besabab और bekhyaal chalne में जो majaa है वो सोच समझ कर chalne में कहाँ ............. आपने लाजवाब रचना लिखी है.......... सब kavitaayen एक से badh कर एक.......... शुक्रिया
Science Bloggers Association ने कहा…
वो बहार ही क्या, जो नखरे न दिखाए।
खूबसूरत रचना है, बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ज्योति सिंह ने कहा…
बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी.
ओम आर्य ने कहा…
bahut bahut khubsoorat baate kah dali hai aapne .........jisaka jabaaw nahi.....atisundar
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
ज्योति जी,

बहुत अच्छी नज़्म .....शब्दों को बखूबी पिरोया है आपने .....!!
ज्योति सिंह ने कहा…
harkirat ji aap padhari mere blog pe dhanya hui main shukriya .

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