नखरे बहार के
बेख्याल होकर गुजर गये
बेसबब ही यहाँ जी गये ,
किस राह को हम निकले
किस राह को चले गये ,
लिए किस तलाश को
बांधे किस आस को ,
किस तलब की प्यास है
जुस्तजू क्या कोई ख़ास है ,
बेखबर ख़ुद से होकर
बहका रहे चाह को ,
होश अपने खो बैठे
चढ़ा के खुमार को ,
गम अज़ीज़ हो गया
खुशी को नकार के ,
हार गये जब हम
उठा के नखरे बहार के ।
बेसबब ही यहाँ जी गये ,
किस राह को हम निकले
किस राह को चले गये ,
लिए किस तलाश को
बांधे किस आस को ,
किस तलब की प्यास है
जुस्तजू क्या कोई ख़ास है ,
बेखबर ख़ुद से होकर
बहका रहे चाह को ,
होश अपने खो बैठे
चढ़ा के खुमार को ,
गम अज़ीज़ हो गया
खुशी को नकार के ,
हार गये जब हम
उठा के नखरे बहार के ।
टिप्पणियाँ
gam ajij ho gaya khushi ko nakar ke. wah.
खुशी को नकार के ,
हार गये जब हम
उठा के नखरे बहार .
बहुत शानदार. इसी तरह लिखतीं रहें. बधाई.
खूबसूरत रचना है, बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छी नज़्म .....शब्दों को बखूबी पिरोया है आपने .....!!