शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

व्यक्तिवाद

कभी -कभी अतीत होता है

इतना भयावह कि

दुःख -दर्द के मेल का

हरेक वाक्या दिल

दहला जाता है

पलट कर देखो तो

आंसुओ का मंजर ही

नज़र आता है

'मैं ' का स्थान शून्य होता

मर्यादा के बोझ तले ,

'हम ' का अस्तित्व जटिल हुआ

आंसुओ और आहो के खेल में

'मैं ' जहां 'हम ' तक

नही बन पाता है ,

रिश्तों की बुनियाद को भी

यही व्यक्तिवाद

हिला देता है

14 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रिश्तों की बुनियाद ........... अपने अपने मैं को भुला कर हम की नीव पर ही खड़ी होती है ......
एक बेहतरीन रचना ......

padmja sharma ने कहा…

ज्योति जी
भाव अच्छे हैं . कोई भी मुरीद हो जाए . 'मैं' का 'हम' बन जाना पानी में चीनी की तरह घुल जाना ही होगा शायद .तब बच जाता है पानी . चीनी मिठास देकर विलीन हो जाती है . यानी एक का अस्तित्व ख़त्म .

राज भाटिय़ा ने कहा…

कभी -कभी अतीत होता है
इतना भयावह कि
दुःख -दर्द के मेल का
बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता

रचना दीक्षित ने कहा…

'मैं ' का स्थान शून्य होता
मर्यादाओ के बोझ तले ,
'हम ' का अस्तित्व जटिल हुआ
आंसुओ और आहो के खेल में
ज्योति जी मैं और हम की इस जंग में हमें बहुत कुछ सीखने को मिला है . इस रचना के लिए बधाई
सादर रचना

अर्कजेश ने कहा…

'मैं' 'और' हम की कशमकश को अभिव्‍यक्ति करती गहन अभिव्‍यक्ति ।

शोभना चौरे ने कहा…

रिश्तों की बुनियाद को भी
यही व्यक्तिवाद
हिला देता है ।
bahut si vythaye kah gai ye pnktiya .
bahut achhi rachna.

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

rishton ki buniyaad........... bahut sunder abhivyakti , jyoti ji , badhaai...

daanish ने कहा…

rishtoN ki buniyaad
aur rishtoN ki sachchaaee
ki steek paribhaashaa
ek achhee rachnaa .

Urmi ने कहा…

वाह ज्योति जी आपने बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है! रिश्ते हमारी ज़िन्दगी का एक एहम हिस्सा होता है और हम सब यही कोशिश करते हैं की हर रिश्ते को बखूबी निभाए!

sandhyagupta ने कहा…

Sundar aur arthpurn abhivyakti.Badhai.

ज्योति सिंह ने कहा…

shukriyaan aap sabhi logo ka jo aakar mere hausle ko badhaya

संजय भास्‍कर ने कहा…

कभी -कभी अतीत होता है
इतना भयावह कि

LAJWAAB LINE

ज्योति सिंह ने कहा…

shukriyaan aap sabhi mitro ka jo aakar yahan hausala badhayaa

निर्झर'नीर ने कहा…

behatriin rachna