अनुभव


छोटी सी दो रचनाये
---------------------------
महंगाई से अधिक
भारी पड़ी हमको
हमारी ईमानदारी ,
महंगाई को तो
संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को
संभाल नही पाये
किसी समझौते पर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी हर हार
जीत साबित हुई ,
बीते समय की
सीख साबित हुई l

टिप्पणियाँ

बहुत सुंदर .....हार से मिली सीख आगे की जीत की रह आसन करती है....
Dorothy ने कहा…
सशक्त और सार्थक संदेश के लिए आभार...
सादर,
डोरोथी.
इमानदारी से महंगाई का साथ भी नजदीकी है. अच्छा सन्देश झलक रहा है कविता से. कवितायेँ छोटी हैं मगर अत्यंत प्रभावपूर्ण है. बधाई.
केवल राम ने कहा…
गहन अर्थों का समावेश है दोनों रचनाओं में .....आपका आभार
Arvind Mishra ने कहा…
सुन्दर सामयिक कवितायेँ !
Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
बेहतरीन ।

सादर
kshama ने कहा…
Dono rachanayen behtareen hain!
vandana gupta ने कहा…
सुन्दर संदेश देती सार्थक रचनायें
Alpana Verma ने कहा…
Yahi haar to jeet hai!
vijay kumar sappatti ने कहा…
ज्योति ... दोनों ही अच्छी कविताएं है .. लेकिन दूसरी कविता ने बहुत ज्यादा असर छोड़ा है मन परे.. कुछ ज्यादा ही गहरी है ...

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
vijay kumar sappatti ने कहा…
ज्योति ... दोनों ही अच्छी कविताएं है .. लेकिन दूसरी कविता ने बहुत ज्यादा असर छोड़ा है मन परे.. कुछ ज्यादा ही गहरी है ...

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सागर ने कहा…
bhaut hi saskt rachna...
बेनामी ने कहा…
umdaa soch hai....badhayee

http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
मेरा मन कितनी सरलता से कह दिया आपने, आभार।
बहुत सुन्दर रचनायें हैं दोनों ही. बधाई.
!!अक्षय-मन!! ने कहा…
choti si hain magar bahut kuch keh jati hain didi bahut hi accha likha hai...niche wale char shabd to kamal karte hain honsla badate hain
satik aur lajawab bahut accha laha aapke dusre blog par v aakar...
didi aap is blogg par vaa kar padna aapko bahut accha lagega ummid hai...
http://akshay-mann-muktak.blogspot.com/
आदरणीया ज्योति सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

क्या बात है ! अच्छी लघु रचनाएं लिखी हैं आपने -

महंगाई को तो संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को संभाल नही पाये किसी समझौते पर


सच है, आप-हम जैसे ईमानदारी से किसी हाल में समझौता कहां कर पाते हैं !

दूसरी रचना भी जैसे इसी से जुड़ी है … अंततः ईमानदारी की हार जीत ही साबित होती है … :)
बधाई आपके अनुभव के लिए


मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह ज्योति जी, बहुत खूब लिखा है आपने
दोनों रचनाएं सीख देने वाली हैं.
Urmi ने कहा…
सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! सुन्दर सन्देश देती हुई उम्दा रचना के लिए बधाई!
Apanatva ने कहा…
bahut badiya kshnikae.....chotee par vaznee.......
Vivek Jain ने कहा…
बहुत सुंदर,
आपका आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ज्योति सिंह ने कहा…
aap sabhi ki aabhari hoon dil se .
Kunwar Kusumesh ने कहा…
संदेशपरक, सटीक और सार्थक रचना.
दोनों रचनाएँ सार्थक सन्देश दे रही हैं ... लोंग सच ही ईमानदार भी नहीं रहने देते :)
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
मेरी हर हार जीत साबित हुई ,
बीते समय की सीख साबित हुई

वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में.... आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
Maheshwari kaneri ने कहा…
सशक्त और सार्थक संदेश...हार से मिली सीख आगे की जीत ..यही सत्य है....
ashish ने कहा…
सुँदर ढंग से सामयिक विचार रखे है . आभार .
बेटे समय से जो सीखता है वो जीतता है ... सार्थक सन्देश हिया दोनों में ...
Rakesh Kumar ने कहा…
क्या कहने!
शानदार बातें कह दीं हैं आपने.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.

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