अनुभव
छोटी सी दो रचनाये
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महंगाई से अधिक
भारी पड़ी हमको
हमारी ईमानदारी ,
महंगाई को तो
संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को
संभाल नही पाये
किसी समझौते पर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी हर हार
जीत साबित हुई ,
बीते समय की
सीख साबित हुई l
टिप्पणियाँ
सादर,
डोरोथी.
सादर
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
satik aur lajawab bahut accha laha aapke dusre blog par v aakar...
didi aap is blogg par vaa kar padna aapko bahut accha lagega ummid hai...
http://akshay-mann-muktak.blogspot.com/
सादर सस्नेहाभिवादन !
क्या बात है ! अच्छी लघु रचनाएं लिखी हैं आपने -
महंगाई को तो संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को संभाल नही पाये किसी समझौते पर
सच है, आप-हम जैसे ईमानदारी से किसी हाल में समझौता कहां कर पाते हैं !
दूसरी रचना भी जैसे इसी से जुड़ी है … अंततः ईमानदारी की हार जीत ही साबित होती है … :)
बधाई आपके अनुभव के लिए
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
दोनों रचनाएं सीख देने वाली हैं.
आपका आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बीते समय की सीख साबित हुई
वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में.... आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
शानदार बातें कह दीं हैं आपने.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.