धीरे --धीरे ...
टूट रहे सारे रिश्ते
कल के धीरे- धीरे
जुड़ रहे सारे रिश्ते
आज के धीरे - धीरे ,
समय बदल गया
सोच बदल गई
मंजिल की सब
दिशा बदल गई ,
हम ढल रहा है अब
मै में धीरे -धीरे
साथ रहने वाले अब
कट रहे धीरे -धीरे ,
सबका अपना आसमान है
सबकी अपनी जमीन हो गईं ,
एक छत के नीचे रहने
वालों की अब कमी हो गई ,
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
10 टिप्पणियां:
सभी बदलने लगे हैं धीरे-धीरे
असल मे मनुष्य अकेला ही है। सारे रिश्ते सिर्फ मन बहलाने के लिए हैं। रिश्तों में भी मनुष्य एकाकीपन महसूस करते हैं। उम्दा।
ये आज का यथार्थ है ।
धन्यवाद
हार्दिक आभार
आपका हार्दिक आभार
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
कोरोना भी बहुत कुछ बदलेगा !
संगीता जी आपका तहे दिल से शुक्रियां ,आपके ब्लॉग पर कमेंट बॉक्स नही नजर आता है ,कोई लिंक हो तो दीजिए ,ताकि पढ़ने के बाद कुछ लिख सकूँ मैं
यथार्थपरक कविता
शुक्रियां वंदना जी
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