धीरे --धीरे.......

धीरे --धीरे ...

टूट रहे सारे  रिश्ते

कल के धीरे- धीरे

जुड़ रहे सारे रिश्ते

आज के धीरे - धीरे ,

समय बदल गया

सोच बदल गई

मंजिल की सब

दिशा बदल गई ,

हम ढल रहा है अब

मै  में धीरे  -धीरे

साथ रहने वाले  अब

कट रहे  धीरे  -धीरे ,

सबका अपना आसमान है

सबकी अपनी जमीन हो  गईं ,

एक छत  के नीचे  रहने

वालों की  अब कमी हो गई ,

रीत बदल रही

धीरे - धीरे

प्रीत बदल रही 

धीरे - धीरे ।

टिप्पणियाँ

Seema Bangwal ने कहा…
असल मे मनुष्य अकेला ही है। सारे रिश्ते सिर्फ मन बहलाने के लिए हैं। रिश्तों में भी मनुष्य एकाकीपन महसूस करते हैं। उम्दा।
ये आज का यथार्थ है ।
Jyoti Singh ने कहा…
धन्यवाद
Jyoti Singh ने कहा…
हार्दिक आभार
Jyoti Singh ने कहा…
आपका हार्दिक आभार
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
कोरोना भी बहुत कुछ बदलेगा !

Jyoti Singh ने कहा…
संगीता जी आपका तहे दिल से शुक्रियां ,आपके ब्लॉग पर कमेंट बॉक्स नही नजर आता है ,कोई लिंक हो तो दीजिए ,ताकि पढ़ने के बाद कुछ लिख सकूँ मैं
vandana gupta ने कहा…
यथार्थपरक कविता
Jyoti Singh ने कहा…
शुक्रियां वंदना जी

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