कुछ बूंदे कुछ फुहार
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कुछ बूंदे कुछ फुआर
तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी थे उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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टिप्पणियाँ
वो भी उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
वाह सुंदर
व्वाहहहहह
बेहतरीन..
सादर
बहुत खूब ...
सादर प्रणाम आदरणीया ज्योति दीदी.आपका संदेश मिला अत्यंत हर्ष हुआ.दो बार मैंने आपको ईमेल किया 'एहसास के गुँचे'के link के साथ.शायद आप को मिला नहीं. एहसास के गुँचे का link मेरे ब्लॉग पर बुक का लोगो लगा है एक बार आप वहाँ क्लिक करे सभी साइड उपलब्ध है वहाँ.एक बार जरुर आइएगा 🙏
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
हृदय को छुती रचना 👌👌👌👌👌
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