मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यो ..........
जीवन की अवधि
एवं दुर्दशा
चींटी की भांति
होती जा रही है
कब मसल जाये
कब कुचल जाये
कब बीच कतार से
अलग होकर
अपनो से जुदा हो जाये ,
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
चिंतित हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यो हो रहा है ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नहीं
या फिर
कर्मो का फल ?
टिप्पणियाँ
दुष्परिणाम तो नहीं
या फिर
कर्मो का फल ?
कुछ समझ में नहीं आ रहा !
बोया बबूल तो ...