आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,
मगर कुछ ही दूर पर
सामने पर्वत खड़ा था
अपनी जिद्द लिए अड़ा था ,
उसका दिल कहाँ पिघलता
वो मुझ जैसा इंसान नही था ,
स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर
खिलखिलाकर हँस पड़े ,
हो बेजान , अहसास क्या समझोगे
हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?
आज न सही कल पार कर जायेंगे
उड़ान भर कर आगे निकल जायेंगे ।
11 टिप्पणियां:
मिलेगा रास्ता हौसलों से
बहुत रचना।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२० -०६-२०२०) को 'ख्वाहिशो को रास्ता दूँ' (चर्चा अंक-३७३८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सतत प्रयास होगा तो निश्चित जीत आगे खाड़ी होगी ... कुछ भी डिगा नहि पाएगा होंसले को ...
सुन्दर।
बढ़िया
सुंदर रचना
बहुत बढ़िया
आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,..
वाह!बहुत खूब !ख़्वाहिशों की राह के पत्थर हटने पर ही लक्ष्य साधना सफल होगी ।
दिल को छूने वाली रचना
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