बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
टिप्पणियाँ
मार्मिक रचना .
सादर
तुमने मेरी बात को सकारात्मक लिया उसके लिए शुक्रिया । थोड़ा झिझक रही थी लिखते हुए । लेकिन मैंने देखा है अपनी पुरानी पोस्ट पर तुमको तो मालूम है कि तुम मेरी पुरानी पाठक हो । इस लिए मुझे थोड़ा जानती होंगी ।
अभी ठीक है ये तुमने ऊपर की पंक्तियों से मिलाते हुए स्त्रीलिंग में लिख दिया था । ऐसा मुझे लगता है ।अभी परफेक्ट । 👌👌👌👌👌
आदरणीय ज्योति जी बहुत ही सुंदर रचना