सोमवार, 8 मार्च 2021

युग परिवर्तन

युग परिवर्तन

न तुलसी होंगे, न राम

न अयोध्या नगरी जैसी शान .

न धरती से निकलेगी सीता ,

न होगा राजा जनक का धाम .

फिर नारी कैसे बन जाये

दूसरी सीता यहां पर ,

कैसे वो सब सहे जो

संभव नही यहां पर .

अपने अपने युग के अनुसार ही

जीवन की कहानी बनती है ,

युग परिवर्तन के साथ

नारी भी यहॉ बदलती है ।

10 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक बात । लोग चाहते कि बस नारी सीता जैसी रहे । सार्थक सोच

नूपुरं noopuram ने कहा…

गागर में सागर । कह दी सारी बात ।
अनुपम ।

Sweta sinha ने कहा…

नारी के लिए समाज का दृष्टिकोण किसी युग में नहीं बदला।
बेहतरीन रचना।

सादर।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

Jyoti khare ने कहा…

सुंदर सृजन
शुभकामनाएं

आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Sudha Devrani ने कहा…

युग परिवर्तन के साथ नारी का बदलना जरूरी भी है
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

मूल स्वभाव वही रहेगा भूमिकाएं बदलती रहेंगी.