युग परिवर्तन
न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सटीक बात । लोग चाहते कि बस नारी सीता जैसी रहे । सार्थक सोच
गागर में सागर । कह दी सारी बात ।
अनुपम ।
नारी के लिए समाज का दृष्टिकोण किसी युग में नहीं बदला।
बेहतरीन रचना।
सादर।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
सुंदर सृजन
शुभकामनाएं
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
युग परिवर्तन के साथ नारी का बदलना जरूरी भी है
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।
मूल स्वभाव वही रहेगा भूमिकाएं बदलती रहेंगी.
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