" मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना " इकबाल जी की ये पंक्तियाँ मेरे जहन में इस तरह बस कर गुनगुनाती है जैसे कोई गहरा रिश्ता हो इन भावो से ,जिस वक़्त इकबाल जी के विचारो में दौड़ी उस वक़्त हालात संप्रदायिक दंगो और माहौल आज़ादी का जुड़ा हुआ रहा । मगर आज ये पंक्तियाँ मेरे लहू में एकता -समानता ,संवेदना व सद्भावना जैसे अहसासों को लेकर दौड़ रही है । जब से मैं होश संभाली और कितने ही किस्से कहानी पढ़े ,मगर कभी किसी ग्रन्थ में जाति और धर्म को दिलो के ज़ज्बातों से जुदा नहीं पाया ,मन की भाषा इन सभी बेतुकी बातों से ऊपर है ,जो व्यक्ति को जोड़ते वक़्त ये गणित नहीं लगाती कि जोड़ है घटाव, और नहीं व्यापारिक बुद्धि दौड़ाती कि फायदा होगा या नुक्सान । सभी धर्मो में मानवता एवं आदर्श की बाते ही लिखी गयी है ,जो इंसान को जाति - पाति, भेदभाव ,उंच -नीच से अलग रखती है ,इंसानियत की परिभाषा धर्मानुसार नहीं होती । इंसानों को तो हमने ही इतने वर्गों में विभाजित किया ,वर्ना हम सभी तो मनु की ही संतान है । हिन्दू बांटे ,मुस्लिम बांटे बाट दिए भगवान को , मत बांटो इंसान को भई मत बांटो इंसान को । यही बात हमें सभी धर्म -...
टिप्पणियाँ
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे।
और दूसरी कविता में-
दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
दर्द से किसी को सरोकार नही होता।
टूटी हुई कड़ियां जुड़ जातीं
तो दर्द कहां होता ।
बिखरे हुए न हम होते
न वो होता ।।
ऐ मेरे दिल,काश उनकी तरह
तू एक परिंदा होता
दर्द जमीं पे डाल देता,
उड़ रहा आसमां होता ।।
सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह....
दर्द से किसी को प्यार नहीं होता
दर्द का कोई व्यापार नही होता
दर्द का कोई साहूकार नही होता
दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
दर्द से किसी को सरोकार नही होता।
बहुत ही सटीक लिखा आपने ज्योति जी दर्द पर लिखी आपकी रचना वाकई शानदार है।
हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कभी दर्द ना आए
लेकिन सच्चाई तो यही है की ज़िन्दगी हो तो दर्द भी रहेगा।
सादर
दर्द की कोई परिभाषा नहीं होती।
न ही कोई नाप तोल जिसके पास जितना वहीं समझे कैसे चुकाता उसका मोल।
अप्रतिम।
दूसरी कविता तो दर्द पर है । दर्द पर दर्द क्या लिखें वाकई दर्द का कोई साथी नहीं
दर्द है तो खुद सहना
दर्द है तो छुपा लेना
दर्द को न सारे आम करना
दर्द है तो ज़िन्दगी है
ज़िन्दगी है तो दर्द है ।