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त्यौहार हमारे जीवन का अंग

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किसी भी त्यौहार की गरिमा को बनाये रखना जरूरी है ,क्योंकि ये त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति को दर्शाते है ,ये हमें अपनी मातृभूमि से जोड़कर रखते है ,आपसी बैर को मिटा कर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए प्रेरित करते है ,बुराई को नष्ट कर अच्छाई की राह पे ले जाते है ,त्यौहार हमारे जीवन को खुशहाल और रिश्तों को मजबूत बनाये रखने का जरिया है ,इसी की वजह से हमें दफ्तरों और विद्यालयों से ढेरो छुट्टियां मिलती है , जिससे व्यस्तता घटती है तथा खुशियों को बाटने का अवसर हाथ लगता है ,ये जीवन में उत्साह व उल्लास के रंग भरते है ,जिससे जीने का हौसला दुगुना हो जाता है ,भला सोचिये क्या किसी और देश की मिटटी इतनी रंग बिरंगी है ,जितनी हमारे भारत देश की ,त्यौहार जीने का आधार है ,तभी तो हमें इससे प्यार है ,इसलिए हम सभी भारत वासियों की जिम्मेदारी बनती है कि इन त्योहारों की रौनक को बरकरार रखे ,इसके महत्व को कम न होने दे ,कितनी ही महंगाई क्यों न हो पकवानों को चखने का मौका इन्ही अवसरों पर मिलता है ,नूतन परिधान लेने का मौका ह...

जमीर

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उसका जमीर आज भी जिन्दा है , तभी तो खड़ा हो आइने के आगे वह शर्मिंदा है .

चुप्पी

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देखते समझते जानते हुए भी वह कुछ नही बोला , बात कुछ अवश्य रही तभी तो उसने मुंह नही खोला l
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सर्दी ने अहसास दिलाया मौसम जाड़े का है आया ,
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हम -तुम ------- एक ही रास्ते के दो मोड़ है , जो पलट कर उसी राह ले आते है जहां आरम्भ और अंत एक हो जाते है , फिर सोचने की कही कोई गुंजाइश नही रह जाती , फैसले की कोई सुनवाई हो ही नही पाती l
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ख्यालो की दौड़ कभी थमती नही कलम को थाम सकू वो फुर्सत नही , जब भी कोशिश की पकड़ने की वक़्त छीन ले गया , एक पल को रूकने नही दिया , सोचती हूँ इन्द्रधनुषी रंग सभी क्या बादल में ही छिप कर रह जायेंगे , या जमीं को भी कभी हसीं बनायेंगे l

वन्दे मातरम्

आज़ादी क्या है ? इसकी सच्ची परिभाषा क्या है , इसे साबित कैसे करे ? ऐसे ढेरो प्रश्न इस जश्न के सामने आते - आते जहन में उठने लगते है जिनके जवाब और मायने हम बहुत हद तक जानते है और समझते भी है , क्योंकि बचपन से ही हमें इस बिषय पर काफी समझाया और पढाया जाता है , कूट - कूट कर देश प्रेम की भावनाये मन में भरी जाती है , उसके प्रति क्या जिम्मेदारिया है हमारी , इस बात का अहसास कराया जाता है । पर जैसे जैसे बड़े होते जाते है इसे अपनी जिम्मेदारियों में , शान - शौकत के रंग ढंग में नज़र अंदाज कर देते है , और मौके मिलने पर स्कूली ज्ञान को ही बयां कर के अपने को सच्चे देश भक्त के रूप में सामने लाते है । लेकिन हर बात कह देने और बयां कर देने से ही सम्पूर्ण नही हो जाती । वो मुक्कमल हो इसके लिए कर्म का योगदान बेहद जरूरी है , तभी उसे उचित तरीके से परिभाषित किया जा सकता है और सम्मानित भी । इसके लिए अपने राष्ट्र की अमूल्य धरोहर को ...