अश्को का सैलाब
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।
टिप्पणियाँ
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।
यकीन और संशय के बीच झूलते शब्द
कितने मुखर और कितने निशब्द !!!
bahut adbhut panktian. sunder rachna,
abhar
abhar