चाँद सिसकता रहा

चाँद सिसकता रहा

शमा जलती रही ,

खामोशी को तोड़ता हुआ

दर्द कराहता रहा ,

और फ़साना उंगुलियां

कलम से दोहराती रही ,

आँखों के अश्क में

शब्द सभी नहाते रहे ,

रात के अँधेरे में

ख्याल लड़खड़ाते रहे ,

एक लम्बी आह में

शब्द एकदम से ठहर गए ,

उंगुलियां बेजान हो

साथ कलम का छोड़ गई ,

दर्द से लिपट

असहाय बनी रही ,

और लिखे क्या

बात लिखने की रही नहीं ,

इस तरह फ़साने गढे नहीं

रह गये अधूरे कही ,

शून्य सा समा बाँध

चाँद भी बेबस रहा ।

चाँद सिसकता रहा ....

टिप्पणियाँ

मर्मस्पर्शी कविता !
Jyoti Singh ने कहा…
आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ,हार्दिक आभार
पवन शर्मा ने कहा…
वाह...सुंदर!
चाँद की सिसकी, कलम का अफसाना
Sunil "Dana" ने कहा…
चाँद सिसकता रहा...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ज्योति जी । बधाई ह्रदय स्पर्शी रचना के लिये ।
और अफ़साना लिखा न गया... बहुत सुन्दर रचना।
Meena Bhardwaj ने कहा…
आँखों के अश्क में
शब्द सभी नहाते रहे ,
रात के अँधेरे में
ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
हृदय स्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
अनीता सैनी ने कहा…
हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय दी .
Amrita Tanmay ने कहा…
बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।

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