ख्वाहिशों को रास्ता दूँ
आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,
मगर कुछ ही दूर पर
सामने पर्वत खड़ा था
अपनी जिद्द लिए अड़ा था ,
उसका दिल कहाँ पिघलता
वो मुझ जैसा इंसान नही था ,
स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर
खिलखिलाकर हँस पड़े ,
हो बेजान , अहसास क्या समझोगे
हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?
आज न सही कल पार कर जायेंगे
उड़ान भर कर आगे निकल जायेंगे ।
टिप्पणियाँ
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,..
वाह!बहुत खूब !ख़्वाहिशों की राह के पत्थर हटने पर ही लक्ष्य साधना सफल होगी ।